लेखनी कहानी -17-Oct-2022# धारावाहिक लेखन प्रतियोगिता # त्यौहार का साथ # फाग या धुलेंडी
होली के अगले दिन धुलेंडी का त्योहार आता है। धुलेंडी को धुरड्डी, धुरखेल, धूलिवंदन और चैत बदी आदि नामों से जाना जाता है। आजकल धुलेंडी पर भी रंग पंचमी जैसा उत्सव मनाते हैं और गेर भी निकालते हैं। परंतु पुराने समय में धुलेंडी अलग तरह से मनाई जाती थी।
कहते हैं कि त्रैतायुग के प्रारंभ में विष्णु ने धूलि वंदन किया था। इसकी याद में धुलेंडी मनाई जाती है। धूल वंदन अर्थात लोग एक दूसरे पर धूल लगाते हैं।
2. होली के अगले दिन धुलेंडी के दिन सुबह के समय लोग एक दूसरे पर कीचड़, धूल लगाते हैं। पुराने समय में यह होता था जिसे धूल स्नान कहते हैं। पुराने समय में चिकनी मिट्टी की गारा का या मुलतानी मिट्टी को शरीर पर लगाया जाता था।
3. पुराने समय में धुलेंडी के दिन टेसू के फूलों का रंग और रंगपंचमी को गुलाल डाला जाता था। धुलैंडी पर सूखा रंग उस घर के लोगों पर डाला जाता हैं जहां किसी की मौत हो चुकी होती है। कुछ राज्यों में इस दिन उन लोगों के घर जाते हैं जहां गमी हो गई है। उन सदस्यों पर होली का रंग प्रतिकात्म रूप से डालकर कुछ देर वहां बैठा जाता है। कहते हैं कि किसी के मरने के बाद कोईसा भी पहला त्योहार नहीं मनाते हैं
पुराने समय में होलिका दहन के बाद धुलेंडी के दिन लोग एक-दूसरे से प्रहलाद के बच जाने की खुशी में गले मिलते थे, मिठाइयां बांटते थे। हालांकि आज भी यह करते हैं परंतु अब भक्त प्रहलाद को कम ही याद किया जाता है।
आजकल होली के अगले दिन धुलेंडी को पानी में रंग मिलाकर होली खेली जाती है तो रंगपंचमी को सूखा रंग डालने की परंपरा रही है। कई जगह इसका उल्टा होता है। हालांकि होलिका दहन से रंगपंचमी तक भांग, ठंडाई आदि पीने का प्रचलन है।
ढोल बजा कर होली के गीत गाए जाते हैं और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है। एक दूसरे को रंगने और गाने-बजाने का दौर दोपहर तक चलता है। इसके बाद स्नान कर के विश्राम करने के बाद नए कपड़े पहन कर शाम को लोग एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं
3. ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता को भूल कर गले मिलते हैं और फिर से दोस्त बन जाते हैं। गले मिलकर एक दूसरे को मिठाइयां खिलाते हैं।
4. राग-रंग के बाद कुछ लोग भांग खाते हैं और कुछ लोग भजिये या गुझिया बनाकर ठंडाई का मजा लेते हैं। गुझिया होली का प्रमुख पकवान है जो कि मावा (खोया) और मैदा से बनती है और मेवाओं से युक्त होती है इस दिन कांजी के बड़े खाने व खिलाने का भी रिवाज है।
इस त्यौहार में सबकी ऊर्जा दिखती है, लेकिन होली के मौके पर हमने देखा है कि जो बच्चे सबसे ज्यादा खुश होते हैं, वे अपने सीने पर रंग-बिरंगी पिचकारी लगाते हैं, सभी पर रंग डालते हैं और जोर-जोर से कहते हैं “होली है भाई होली है बुरा ना मानो होली है“। होली का त्योहार अपने साथ सकारात्मक ऊर्जा लेकर आता है और आसमान में बिखरे गुलाल की तरह ऊर्जा को चारों ओर फैला देता है। इस त्योहार की खास तैयारियों में भी लोगों के अंदर काफी उत्साह देखा जा सकता है।
होली रंगों का त्योहार है। होली से एक रात पहले होलिका दहन का कार्यक्रम होता है। इसके लिए शहर के प्रमुख चौराहों पे होली जलाई जाती है। यह ईश्वर की अनंत शक्ति और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रमाण देता है। अगली सुबह रंग खेला जाता है। होली पर हर कोई काफी एक्साइटेड होता है। बड़े भी बच्चे बन जाते हैं, हर उम्र के चेहरे को रंगों से इस तरह रंगते हैं कि पहचानना मुश्किल हो जाता है। अमीर-गरीब, ऊंच-नीच का भेद भूलकर सभी होली में खुशी से नाचते नजर आते हैं। नृत्य करने का एक अन्य कारण भांग और ठंडाई भी है, इसे होली पर विशेष रूप से पिया जाता है। घर की महिलाएं सारे पकवान बनाकर दोपहर से ही होली खेलने लगती हैं, वहीं बच्चे सुबह उठकर जोश के साथ मैदान में आते हैं।
होली खुशियों से भरे रंगों का त्योहार है, यह भारत की धरती पर प्राचीन काल से ही मनाया जाता है। इस त्योहार की खास बात यह है कि इसकी मस्ती में लोग आपसी नफरत को भी भूल जाते हैं। वास्तव में होली का त्योहार में लोग एक दूसरे के गिले- शिकवे भूल के आपस में मिलते हैं। ये त्योहार आपसी प्रेम और सदभावना का प्रतीक है
Khushbu
13-Nov-2022 06:00 PM
Nice 👍🏼
Reply
Mahendra Bhatt
04-Nov-2022 04:37 PM
बहुत खूब
Reply
Haaya meer
03-Nov-2022 09:43 PM
Amazing
Reply